Freedom fighters of india list Amar Shahid Bandhu Singh Gorakhpur

एक ऐसा देवी भक्त, जिसने मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते चूम लिया फांसी का फंदा





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गोरखपुर 
पूर्वांचल के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में एक मां तरकुलहा मंदिर को कौन नहीं जानता है। किंतु इस पीठ की स्थापना के पीछे क्या राज है, संभवत: बहुत कम लोग ही जानते होंगे। यूँ तो इस शक्तिपीठ पर वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है किंतु चैत्र नवरात्रि में 1 माह तक इस पीठ पर लगने वाला मेला इसके आध्यात्म की अलग कहानी बयां करता है।
बात करते हैं इस शक्ति पीठ की स्थापना के रहस्य की। जिस समय देश में अंग्रेजी हुकूमत का तांडव मचा हुआ था और चारों ओर लोग त्राहिमाम करते थे। उसी समय गोरखपुर क्षेत्र के चौरीचौरा स्थित डुमरी रियासत के 34 गांव के जमींदार शिवप्रसाद सिंह के घर 1 मई, 1833 को बंधु सिंह का जन्म हुआ। अपने परिवार में छः भाइयों में सबसे बड़े बंधू सिंह के अतिरिक्त उनके अन्य भाई करिया सिंह, तेजई सिंह, दया सिंह, फतेहसिंह ,धम्मन सिंह थे।
बचपन से ही बंधु सिंह मां शक्ति के अनन्य उपासक थे, और बचपन में ही कुशीनगर स्थित मदनपुर देवी स्थान के अपने रिश्तेदारी में गए तो वहां मदनपुर स्थित माता के मंदिर से एक छोटा शक्ति पिंड उठाकर उन्होंने अपने रियासत के सरवर ( जो कि तरकुल के पेड़ों से आच्छादित था )के पास स्थापित कर दिया और उसकी नित्य ही पूजा पाठ करने लगे।
धीरे धीरे जब वह किशोरावस्था की तरफ अग्रसर हुए तो अपने रियासत के राजगुरु से शस्त्र व शास्त्र विद्या लेकर तत्कालीन अंग्रेजी दास्तान के पेड़ों में जकड़ी भारत मां को आजाद कराने का एक बार जो प्रण लिया तो उसी जगह पर आजीवन चल पड़े। शस्त्र विद्या में निपुण बंधु सिंह के प्रहार उसे अंग्रेजी सेना बौखला की गई थी क्योंकि उनका मानना था कि गुरिल्ला युद्ध की तर्ज पर ही इन से जीता जा सकता है और अपनी युद्ध प्रणाली में उन्होंने यही किया।
किवदंती है कि उस समय मां को बलि देने की प्रथा थी और बंधु सिंह भी अंग्रेजी सैनिकों को मारकर उनका सर शक्तिपीठ के समीप स्थित कुएं में मां को भेंट चढ़ाते थे। अपने गुरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले बंधु सिंह को पकड़ने के अंग्रेजों ने कई चालें चली किंतु कामयाब न हो सके आखिरकार उन्होंने रियासत से जुड़े एक व्यक्ति को अपना मुखबीर बना लिया।
जिसने धोखे से 1858 में बंधू सिंह को अंग्रेजो के हाथ गिरफ्तार करवा दिया इसके बाद भी अंग्रेजों का जब मन नहीं भरा तो उन्होंने बंधू सिंह को सरेआम फांसी पर लटकाने की सजा सुना दी और 12 अगस्त 1858 को अली नगर स्थित एक बरगद के पेड़ पर सरेआम लटकाने का मंसूबा बनाया।
किंतु अपने भक्त कि यह प्रताणना मां कैसे सहन करती। नतीजा अंग्रेजों द्वारा उन्हें छह बार फांसी के फंदे से लटकाया गया और 6 बार ही फ़ंदा अपने आप टूट जाता था। आखिरकार इस देवी के भक्त ने मां से विनती किया कि मां अब मेरा समय आ गया है, अब मुझे हंसते-हंसते मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने दो और इसके साथ ही उन्होंने हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमा और अपने गले में डाल लिया।
कहा जाता है कि ज्योही शहीद बंधू सिंह का गर्दन फंदे से झूला, ठीक उसी वक्त माँ के मंदिर स्थित तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया और उसमें से रक्तधारा बह निकली। तब से ही इस देवी पीठ की महत्ता तरकुलहा देवी के नाम से हो गयी।
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Milan Tomic

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